खगोलीय दूरदर्शी
वह प्रकाशिक यंत्र जिसके द्वारा बहुत दूर स्थित वस्तुओं तथा आकाशीय पिंड जैसे – चांद, तारे आदि को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। तो उसे खगोलीय दूरदर्शी (astronomical telescope in Hindi) कहते हैं।
संरचना
इसमें धातु की एक लंबी बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर अधिक फोकस दूरी एवं बड़े द्वारक का उत्तल लेंस लगा होता है। जिसे अभिदृश्यक लेंस कहते हैं। नली के दूसरे सिरे पर एक छोटी नली लगी होती है जिसके बाहरी सिरे पर अभिदृश्यक की अपेक्षा कम फोकस दूरी तथा छोटे द्वारक वाला एक दूसरा उत्तल लेंस लगा होता है। जिसे नेत्रिका लेंस कहते हैं।

नेत्रिका लेंस के फोकस पर क्रॉस तार लगे रहते हैं। अब दंतुर दंड चक्र द्वारा एक नली को दूसरी नली के भीतर या पीछे खिसकाकर दोनों लेंसों के बीच की दूरी बदला जा सकती है।
खगोलीय दूरदर्शी की कार्यविधि
दूर की वस्तु को देखने के लिए अभिदृश्यक लेंस को वस्तु की ओर कर लिया जाता है। लेंसों के बीच की दूरी को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि अभिदृश्यक लेंस द्वारा वस्तु का उल्टा, वास्तविक तथा छोटा प्रतिबिंब बनता है जो कि नेत्रिका लेंस तथा इसके प्रथम फोकस fe के बीच में है। तथा यह प्रतिबिंब नेत्र का लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है। तथा नेत्रिका लेंस द्वारा इसका सीधा एवं आभासी प्रतिबिंब बनता है। जो कि मूल वस्तु के सापेक्ष उल्टा होता है। चित्र द्वारा स्पष्ट है।
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खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता
1. जब अंतिम प्रतिबिंब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है :
यदि अंतिम प्रतिबिंब A2B2 स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बनता है तो नेत्रिका के लिए
नेत्रिका से दूरी v = -D
वस्तु से दूरी u = -ue
नेत्रिका की फोकस दूरी f = +fe
लेंस सूत्र में मान रखने पर
\large \frac{1}{-D} - \frac{1}{-u_e} = \large \frac{1}{f_e}
\large \frac{1}{u_e} = \large \frac{1}{D} + \frac{1}{f_e}
\large \frac{1}{u_e} = \large \frac{1}{f_e} \left(1 + \frac{f_e}{D}\right)
fo से दोनों ओर गुणा करने पर
\large \frac{f_o}{u_e} = \large \frac{f_o}{f_e} \left(1 + \frac{f_e}{D}\right)
अतः खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता
\footnotesize \boxed { M = -\frac{f_o}{f_e} \left(1 + \frac{f_e}{D}\right) }
2. जब अंतिम प्रतिबिंब अनन्त पर बनता है :
तो खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता
\footnotesize \boxed { M = -\frac{f_o}{f_e} }
इस दशा में खगोलीय दूरदर्शी की लंबाई (fo + fe) होती है।
जहां fo = अभिदृश्यक लेंस की फोकस
fe = नेत्रिका की फोकस दूरी
अतः उपरोक्त सूत्रों द्वारा स्पष्ट होता है कि खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए अभिदृश्यक लेंस की फोकस दूरी fo अधिक तथा नेत्रिका लेंस की फोकस दूरी fe कम होनी चाहिए।