संधारित्र किसे कहते हैं उपयोग, प्रकार, सिद्धांत, इकाई क्या है इसकी धारिता का मात्रक लिखिए

विद्युत धारिता किसे कहते हैं इसके बारे में हम पढ़ चुके हैं। प्रस्तुत लेख के अंतर्गत संधारित्र किसे कहते हैं इसके उपयोग, प्रकार, सिद्धांत एवं इसकी धारिता के बारे में संपूर्ण अध्ययन करेंगे।

संधारित्र

एक ऐसी युक्ति जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है ऐसी युक्ति को संधारित्र (capacitor in Hindi) कहते हैं।
अथवा संधारित ऐसी दो चालकों का युग्म है जिस पर बराबर तथा विपरीत आवेश होता है।

संधारित्र की धारिता

किसी संधारित्र की एक प्लेट को दिए गए आवेश तथा दोनों प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवांतर के अनुपात को संधारित्र की धारिता कहते हैं।
यदि किसी संधारित्र की प्लेट को +q आवेश देने पर उसकी प्लेटों के बीच V विभवांतर उत्पन्न होता है। तो संधारित्र की धारिता की परिभाषा से
\footnotesize \boxed { C = \frac{q}{V} }
C को संधारित्र की धारिता कहते हैं। इसका मात्रक फैरड होता है।

संधारित्र की धारिता निम्न बातों पर निर्भर करती है।
1. प्लेटों के क्षेत्रफल पर – किसी संधारित्र की धारिता प्लेटो के क्षेत्रफल पर निर्भर करती है अर्थात प्लेटों का क्षेत्रफल बढ़ाने पर संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है। चूंकि यह इसके अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात्
\footnotesize \boxed { C ∝ A }

2. बीच की दूरी पर – संधारित्र की धारिता दोनों प्लेटों के बीच की दूरी पर निर्भर करती है। अर्थात् दोनों प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ाने पर संधारित्र की धारिता घट जाती है। चूंकि यह इसके व्युत्क्रमानुपाती होती है।
\footnotesize \boxed { C ∝ \frac{1}{d} }

3. प्लेटों के बीच माध्यम पर संधारित्र की धारिता दोनों प्लेटों के बीच के माध्यम पर निर्भर करती है। अर्थात् प्लेटों के बीच परावैद्युत माध्यम की उपस्थिति पर संधारित की धारिता बढ़ जाती है। चूंकि यह इसके अनुक्रमानुपाती होती है।
\footnotesize \boxed { C ∝ K }

Note – सभी छात्र ध्यान दें कि कभी-कभी इस तरह से भी प्रश्न पूछ लिया जाता है कि संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं। तो यह जो ऊपर तीन कारक लिखाए गए हैं यह संधारित्र की धारिता को प्रभावित करते हैं।

पढ़ें… समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता का व्यंजक | parallel plate capacitor in hindi
पढ़ेंसंधारित्र का संयोजन, श्रेणी क्रम तथा समांतर क्रम संयोजन का व्यंजक

संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा

\footnotesize \boxed { U = \frac{1}{2} \frac{q^2}{C} }
धारिता के सूत्र q = CV से
\footnotesize \boxed { U = \frac{1}{2} CV^2 }
यह संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा या संधारित्र में संचित ऊर्जा का सूत्र है।

संधारित्र का सिद्धांत

जैसे संधारित्र की परिभाषा में स्पष्ट है। कि किसी एक चालक के पास कोई दूसरा चालक लाकर पहले चालक की धारिता बढ़ाई जाती है। तो चालको के इस समायोजन को संधारित्र कहते हैं।

संधारित्र का सिद्धांत इस तथ्य पर ही आधारित है। कि जब किसी आवेशित चालक के पास कोई आवेशहीन चालक को रखा जाता है। तो आवेशित चालक का विभव कम हो जाता है।
सूत्र C = \large \frac{q}{V}
से स्पष्ट होता है कि चालक का विभव कम हो जाने से उसमें धारिता की वृद्धि हो जायेगी।

संधारित्र के उपयोग

संधारित्र का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है।
1. विद्युत उपकरणों में संधारित्र का प्रयोग किया जाता है।
2. ऊर्जा का संचय करने में


शेयर करें…

Comments 1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *