चुंबकीय क्षेत्र में आवेश की गति
माना कोई धन-आवेशित कण +q एकसमान चुंबकीय क्षेत्र B में V वेग से क्षेत्र की दिशा के लंबवत प्रवेश करता है। यदि इस कण पर लगने वाला चुंबकीय बल F है तो
F = qVBsinθ

जहां θ चुंबकीय क्षेत्र तथा वेग के बीच का कोण है। चूंकि आवेशित कण का वेग, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत है। तो
θ = 90° तब चुंबकीय बल
F = qVB
इस बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र B तथा आवेशित कण के वेग V के लंबवत् होगी। लंबवत बल (qVB) अभिकेंद्र बल की भांति कार्य करता है। अर्थात् आवेशित कण एक वृत्तीय पथ पर गति करने लगेगा।
वृत्ताकार गति में कल पर लगने वाला अभिकेंद्र बल
F = \large \frac{mV^2}{r}
जहां m आवेशित कण का द्रव्यमान तथा r वृत्तीय पथ की त्रिज्या है।
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अब दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
F = F
मान रखने पर
qVB = \large \frac{mV^2}{r}
\footnotesize \boxed { r = \frac{mV}{qB} } समीकरण (1)
माना आवेशित कण का संवेग P है। तो
P = द्रव्यमान × वेग
P = mV
तब \footnotesize \boxed { r = \frac{P}{qB} }
माना यदि कण की गतिज ऊर्जा K है तो
K = \frac{1}{2} mV2
या V = \sqrt{\frac{2K}{m} }
अब V का मान समीकरण (1) में रखने पर
r = \frac{m × \sqrt{2K/m}}{qB}
\footnotesize \boxed { r = \frac{\sqrt{2mK}}{qB} }
इस समीकरण द्वारा कण के वृत्तीय पथ की त्रिज्या को कण की गतिज ऊर्जा के पदों में ज्ञात कर सकते हैं।
चूंकि कण एक चक्कर में 2πr दूरी तय करता है। माना कण का आवर्तकाल T है तो
T = \frac{2πr}{V}
समीकरण (1) से r का मान रखने पर आवर्तकाल
T = \frac{2π × mV}{qB × V}
\footnotesize \boxed { T = \frac{2πm}{qB} }
आवर्तकाल के व्युक्रम को आवृत्ति n कहते हैं तब
n = \frac{1}{T}
\footnotesize \boxed { n = \frac{qB}{2πm} }
Note – यदि आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र B में तिरछा प्रवेश करता है। तो कण कुण्डलिनी गति उत्पन्न करता है। अर्थात कण का पथ एक कुंडलिनी के रूप में होता है।
एक वृत्तीय चक्कर पूरा करने में कण द्वारा चली गई कुल दूरी को चूड़ी अंतराल (पिच) कहते हैं।
Note – चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर आवेशित कण पर लगने वाला शून्य होता है।
जब कोई आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र में समांतर प्रवेश करता है। तो
θ = 0° तब
F = qVBsin0°
F = 0
अर्थात् स्पष्ट होता है कि जब कोई आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र के समांतर प्रवेश करता है। तो कण पर कोई कार्य नहीं होता है।