क्यूरी का नियम
वैज्ञानिक क्यूरी ने अनेक प्रायोगिक रूप द्वारा यह पता लगाया, कि अनुचुंबकीय पदार्थ की चुंबकन तीव्रता (I), चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (H) के अनुक्रमानुपाती होती है। एवं परमताप (T) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्
I ∝ \frac{H}{T}
या I = C \left(\frac{H}{T}\right)
जहां C एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है। जिसे क्यूरी नियतांक कहते हैं। तथा यह समीकरण क्यूरी का नियम (curie’s law in Hindi) कहलाती है। अर्थात्
\footnotesize \boxed { C = \left(\frac{T × I}{H}\right) }
Note –
अनुचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति χ इन पदार्थों के केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
\footnotesize \boxed { χ ∝ \frac{1}{T} }
इसे क्यूरी का नियम कहते हैं।
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क्यूरी ताप
वह उचित ताप जिस पर लौह चुंबकीय पदार्थ अनुचुंबकीय पदार्थ में बदल जाता है क्यूरी ताप कहलाता है।
अर्थात् यदि हम किसी लौह चुंबकीय पदार्थ को गर्म करते हैं तो लौह चुंबकीय पदार्थ के गुण एक निश्चित ताप पर नष्ट हो जाते हैं। तथा लौह चुंबकीय पदार्थ, अनुचुंबकीय पदार्थों में बदलने लगता है। तथा पदार्थ को ठंडा करने पर यह पुनः लौह चुंबकीय हो जाता है।
क्यूरी ताप के उदाहरण –
निकिल (Ni) का क्यूरी ताप = 358°C
आयरन (Fe) का क्यूरी ताप = 770 °C
कोबाल्ट (Co) का क्यूरी ताप = 1121 °C होता है।
Note – यहां पर ताप को सेल्सियस में दिया गया है। तथा केल्विन में इस ताप को बदलने के लिए 273 जोड़ देते हैं। जैसे निकिल का क्यूरी ताप 358°C होता है तो यह 358 + 273 = 631K (केल्विन) होगा।
अर्थात् निकिल का क्यूरी ताप 358°C या 631K होता है।