साइक्लोट्रॉन
यह वैज्ञानिक ई.ओ. लॉरेंस द्वारा आविष्कृत एक ऐसी युक्ति होती है। जिसका उपयोग आवेशित कणों (जैसे प्रोटॉन, ड्यूटॉन या एल्फा कण) को त्वरित करने में किया जाता है। इस प्रकार की युक्ति को साइक्लोट्रॉन (cyclotron in Hindi) कहते हैं।
संरचना
इसमें धातु की दो अर्धवृत्ताकार खोखली डिस्क होती है। जिनका आकार अंग्रेजी वर्णमाला के D अक्षर की तरह होता है। जिस कारण इन्हें डीज कहते हैं। इन दोनों डीज D1 व D2 को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है की इन दोनों के व्यास परस्पर समांतर हो तथा इनके बीच कुछ रिक्त स्थान हो, जिससे यह एक दूसरे से पृथक्कृत रहें।
डीज के बीच लगभग 105 वोल्ट की कोटी का प्रत्यावर्ती विभवांतर स्थापित किया जाता है। तथा डीज के तल के लंबवत् दिशा में एक विद्युत चुंबक द्वारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है।

साइक्लोट्रॉन की कार्यविधि
दोनों डीज के बीच के रिक्त स्थान में +q आवेश व m द्रव्यमान का एक कण है। विद्युत क्षेत्र के कारण यह कण किसी एक डीज की ओर त्वरित होता है। डीज के भीतर यह कण अर्धवृत्ताकार आकार पथ में दक्षिणावर्ती दिशा में एक स्थिर चाल से गति करने लगता है।
चुंबकीय क्षेत्र B के कारण कण v वेग से r त्रिज्या के एक वृत्तीय पथ पर चलने लगता है। तब इस वृत्ताकार पथ पर आरोपित अभिकेंद्र बल F हो तो
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F = \large \frac{mv^2}{r}
चूंकि यह अभिकेंद्र बल, चुंबकीय बल के द्वारा ही आरोपित होता है इसीलिए यह दोनों आपस में बराबर होंगे। तो
अभिकेंद्र बल = चुंबकीय बल
मान रखने पर
\large \frac{mv^2}{r} = qvB
r = \large \frac{mv}{qB} समी.(1)
कोणीय वेग ω = \large \frac{v}{r} समी.(2)
कण द्वारा डीज के भीतर एक अर्ध वृत्त पूरा करने लगा समय t हो तो
t = \large \frac{π}{ω}
ω का मान समी.(2) से रखने पर
t = \large \frac{πr}{v}
अब समी.(1) से r का मान रखने पर
t = \large \frac{π × mv/qB}{v}
t = \large \frac{π × m}{qB}
चूंकि यह समय एक अर्धवृत्त को पूरा करने में लगा है।
अतः यह तो हम जानते ही हैं कि एक पूर्ण चक्कर करने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं। तो
कण का आवर्तकाल
T = 2t
T = \large \frac{2πm}{qB}
आवर्तकाल के व्युत्क्रम को आवृत्ति कहते हैं तो
v = \frac{1}{T}
\footnotesize \boxed { \nu = \frac{qB}{2πm} }
ईसे साइक्लोट्रॉन आवृत्ति कहा जाता है। जहां B चुंबकीय क्षेत्र है।
Note – जब दोलित्र की आवृत्ति आवेशित कण के परिक्रमण की आवृत्ति के बराबर होती है तब कण उस क्षण निर्गत होता है। जब सामने वाले डीज पर विभव ऋणात्मक होता है। यह स्थिति साइक्लोट्रॉन अनुनादी स्थिति होती है।
साइक्लोट्रॉन का उपयोग
- साइक्लोट्रॉन का उपयोग धन आवेशित कणों को अति उच्च ऊर्जाओं तक त्वरित करने में क्या जाता है।
- साइक्लोट्रॉन के द्वारा अनाआवेशित कण जैसे- न्यूट्रॉन तथा धन आवेशित कण जैसे- इलेक्ट्रॉन को त्वरित नहीं किया जा सकता है।
साइक्लोट्रॉन संबंधित प्रश्न उत्तर
Q.1 साइक्लोट्रॉन का आविष्कार किसने किया?
Ans. वैज्ञानिक ई.ओ. लॉरेंस
Q.2 साइक्लोट्रॉन का सूत्र क्या है?
Ans. v = qB/2πm
Q.3 साइक्लोट्रॉन का उपयोग क्या है?
Ans. धन आवेशित कणों को अति उच्च ऊर्जाओं तक त्वरित करना