हाइगेंस का तरंग सिद्धांत क्या है यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है प्रस्तुत लेख के अंतर्गत हम इसी टॉपिक को पूर्ण रूप से कवर करेंगे एवं इसमें हम द्वितीयक तरंगिकाओं की परिकल्पनाएं भी समझने का प्रयास करेंगे।
हाइगेंस का तरंग सिद्धांत
हॉलैंड के वैज्ञानिक क्रिस्टिआन हाइगेंस ने प्रकाश तरंगों के संबंध में एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे हाइगेंस का तरंग सिद्धांत (huygens wave theory in Hindi) कहते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है प्रकाश स्रोत से निकलकर ये तरंगे सभी दिशाओं में प्रकाश की चाल से गमन करती हैं। क्योंकि प्रकाश तरंगों के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। अतः हाइगेंस ने एक सर्वव्यापी माध्यम ईथर की कल्पना की। क्योंकि ईथर में प्रकाश तरंग के संचरण होने के सभी गुण उपस्थित हैं ईथर लगभग भारहीन होता है। यह किसी भी माध्यम में प्रवेश कर सकता है। ईथर का घनत्व बहुत कम होता है। तथा इसमें प्रत्यास्थता का गुण बहुत अधिक होता है। इसी कारण प्रकाश तरंग ईथर में अधिक वेग से गमन करती हैं। एवं जब यह तरंगे हमारी आंख की रेटिना पर पड़ती है तो हमें वस्तु दिखाई देने लगती है।
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के गुण
- हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश के अपवर्तन तथा परावर्तन के नियमों की व्याख्या की जा सकती है।
- हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश के व्यतिकरण एवं विवर्तन की व्याख्या की जा सकती है।
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हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के दोष
- हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकी।
- इस सिद्धांत में प्रकाश को अनुदैर्ध्य माना गया, जिस कारण हाइगेंस के तरंग सिद्धांत प्रकाश के ध्रुवण की व्याख्या नहीं कर सका।
हाइगेंस का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत
हाइगेंस ने द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धांत के लिए निम्नलिखित परिकल्पना प्रस्तुत की जो निम्न प्रकार से हैं।
1. जब किसी माध्यम में स्थित तरंग स्रोत से तरंगे निकलती है तो स्रोत की सभी दिशाओं में स्थित माध्यम के कण कंपन करने लगते हैं। माध्यम का वह पृष्ठ जिसमें स्थित प्रत्येक कण समान कला में कंपन करते हैं। तब माध्यम के उस पृष्ठ को तरंगाग्र कहते हैं। तरंग स्रोत से अधिक दूरी पर जाने पर तरंगाग्र समतल हो जाता है।
2. तरंगाग्र पर उपस्थित सभी कण एक नए तरंग स्रोत का कार्य करते हैं। इन नए तरंग स्रोत से सभी दिशाओं में तरंगे निकलने लगती हैं। इन नवीन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएं कहते हैं। माध्यम में द्वितीयक तरंगिकाओं की चाल, प्राथमिक तरंगिकाओं की चाल के बराबर ही होती है अर्थात् यह दोनों प्रकार की तरंगे समान चाल से आगे बढ़ती हैं।
3. यदि किसी समय इन द्वितीयक तरंगिकाओं का आवरण (envelope) अर्थात् उन्हें स्पर्श करता हुआ पृष्ठ अगर खींचता है तब यह आवरण उस समय तरंगाग्र की नई स्थिति को प्रदर्शित करता है।
Note – वह दिशा जिसमें तरंगाग्र आगे की ओर बढ़ता है। तब उसे किरण कहते हैं। समांग माध्यम में किरणें सदैव तरंगाग्र के लंवबत् होती हैं। तथा किरणों के समूह को प्रकाश पुंज कहा जाता है। जब प्रकाश स्रोत बहुत अधिक दूरी पर होता है तब तरंगाग्र के किसी छोटे भाग को समतल तरंगाग्र माना जा सकता है।
आशा करते हैं कि हाइगेंस के तरंग सिद्धांत संबंधित यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपको इसको समझने में कोई परेशानी है या आपका कोई सुझाव है तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बताएं हम जल्द ही आपके समस्या का समाधान करने का प्रयास करेंगे।
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