संत कबीरदास का जीवन परिचय
भक्त शिरोमणि कवि संत कबीरदास जी का जन्म सन् 1398 ई० के आसपास वाराणसी के काशी में हुआ था। इनके जन्म को लेकर अभी भी लोगों में मतभेद है। इसलिए कोई भी उचित तारीख नहीं बता पाएगा कि आखिरकार संत कबीर का जन्म कब हुआ था।
वैसे तो कबीर दास जी का जन्म एक गरीब ब्राह्मण विधवा के गर्भ से हुआ था। लेकिन कबीरदास जी को जन्म देने के बाद उनकी माता ने बदनामी के कारण उनको नदी में बहा दिया था।

दूसरी ओर कबीर दास जी की दत्तक माता नीमा नदी किनारे से ही कबीर दास जी को प्राप्त की थी और घर आकर उन्होंने अपने पति से कबीर दास जी के विषय में कहा था। तब उन लोगों ने कबीरदास जी को अपना नाम देने का फैसला किया था। तभी तो माता रूप में नीमा एवं पिता के रूप में नीरू जुलाहे को जाना जाता है।
आरंभिक जीवन
जन्म | सन् 1398 ई० में |
जन्म स्थान | काशी में |
मृत्यु | सन् 1495 ई० में |
गुरु | रामानंद |
रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
कबीर दास जी का बचपन बहुत ज्यादा अभावों में बीता था। उनके माता-पिता बहुत अच्छी आमदनी नहीं करते थे। उसी में ही उनको गुजारा करना पड़ता था। लेकिन कबीरदास जी ने कभी भी अपने माता-पिता से किसी भी बात को लेकर शिकायत नहीं की थी।
कारण वह जानते थे कि उनके पास जो कुछ भी है। वह बहुत है औरों के पास तो इतना भी नहीं होता है। जिस तरह से कबीरदास जी का बचपन बीता था। उसी तरह से शादी के बाद के कुछ दिन बीते थे।
शादी के बाद जब उनकी पत्नी लोई मायके जाती थी। तो कबीर जी भी उनके साथ साथ चले जाते थे। लेकिन उनकी पत्नी को यह बात बिल्कुल भी मंजूर नहीं थी। एक दिन उन्होंने कबीर जी से कह दिया था कि जब भी वह मायके जाएं तो वह उनके पीछे पीछे ना जाया करें।
उस दिन उन्हें यह एहसास हो गया कि उनका इस दुनिया में कोई भी नहीं है और उस दिन से उन्होंने प्रण ले लिया था कि अब से वह जो भी काम करेंगे, वह समाज के लिए ही करेंगे और उनके उसी फैसले ने ही उन्हें कबीर से संत कबीरदास बना दिया था।
संत कबीरदास की रचनाएं
कबीर दास जी ने कबीर की साखियां, कबीर के दोहे, कबीर ग्रंथ, कबीर सागर जैसी कृतियों को लिखा है।
शिक्षागत योग्यता
कबीर दास जी के संबंध में कहा जाता है कि वह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्हें अनपढ़ की श्रेणी में ही रखा जाता है। शिक्षागत योग्यता न होने के बावजूद भी उन्होंने अपने अनुभव से, अपनी कल्पना शक्ति से लोगों में संदेश पहुंचाने का कार्य किया। जो संदेश एक व्यक्ति के जीवन को बदल कर रख सकता है।
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कबीर दास जी के विषय में एक और बात यह है कि वह भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे उन्हें भाषाओं का ज्ञान नहीं था लेकिन फिर भी बहुत ही अच्छे से हिंदी अवधी, भोजपुरी आदि अनेक भाषा में कविता, गीत लिखा करते थे।
यहां तक कि उनके संबंध में यह भी कहा जाता है कि वह जिस बात को जिस तरह से बोलना चाहते थे। वह उसी तरह से बोलकर प्रकट भी कर देते थे। यही कारण है कि उन्हें वाणी के डिटेक्टर के रूप में भी जाना जाता है। कबीरदास की ज्यादातर कविता में यह देखा गया है कि वह बोलचाल की भाषा को ही अपनी कविता एवं संगीत का माध्यम बनाते थे। ताकि आम जनता भी उनके कविता एवं गीत को पढ़ सकें।
सामाजिक कार्यकर्ता
कबीर दास जी को उनके समय में एक समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। उनको भिन्न-भिन्न मतभेद नहीं पसंद था। न ही उनको भिन्न-भिन्न मूर्तियों की पूजा करना पसंद होता था। वह एक ईश्वरवाद में विश्वास करते थे। वह कट्टरपंथी में विश्वास नहीं करते थे। उनके अनुसार ईश्वर भी एक है और धर्म भी एक है।
उन्हें जो चीज जहां गलत लगती थी। वहां पर वह टोंक देते थे और स्पष्ट रूप से स्पष्ट बातें सभी के समक्ष कहते थे। उन्हें लोगों की आलोचना करना या किसी का किसी से तुलना करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। वह मुंहफट थे और जब भी किसी को कोई बात समझानी होती थी। तो वह बिल्कुल फटकार लगाकर समझाते थे यही कारण है कि कबीरदास जी को आज के समय में भी लोग सम्मान करते हैं। लोग उनके बातों को फॉलो करते हैं।