काका कालेलकर का जीवन परिचय
दोस्तों हम सभी में ज्यादातर लोग काका कालेलकर को एक लेखक और साहित्यकार के रूप में जानते है लेकिन क्या आप जानते है भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में उनका भी योगदान रहा था I जी हाँ काका कालेकर एक स्वतन्त्रता सेनानी भी थे और उन्होंने गाँधी की अहिसावादी विचारधारा को अपनाते हुए अंग्रेजो का विरोध भी किया था I आज हम आपको काका कालेकर के जीवन से लेकर उनकी मृत्यु तक के सफर के बारे में बताने वाले है इसमें आपको कुछ ऐसी बाते जानने को मिलेगी जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे I

जीवन परिचय
जन्म | 1 दिसंबर 1885 में |
जन्म स्थान | सतारा महाराष्ट्र में |
मृत्यु | 21 अगस्त 1981 में |
पिता का नाम | श्री बालकृष्ण कालेलकर |
रचनाएं | सर्वोदय, जीवन लीला, बापू की झांकियां, लोकमाता, उस पार के पड़ोसी आदि |
भाषा | सरल, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण |
काका का जन्म 1 दिसम्बर 1885 महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में हुआ था जिसका नाम था कलेली I इसी गाँव में उन्होंने अपनी शुरूआती पढाई लिखाई भी की थी I कालेकर के पिता का नाम बालकृष्ण कालेकर था जोकि खुद एक कोषाधिकारी थे I
कालेलकर जी की ,मातृ भाषा मराठी थी इसके बावजूद उन्होंने हिंदी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला जैसी कई भाषाओं का अध्ययन किया था I इन्ही सभी भाषाओं में उन्होंने हिंदी निबन्ध, यात्रावृत्तांत, जीवनी और संसमरण जैसे कई लेख लिखे थे I कालेकर जी काफी सालो से गुजरात में रहते आ रहे थे जिसकी वजह से उनकी सबसे ज्यादा पकड़ गुजराती भाषा में रही और वे गुजराती के प्रख्यात लेखक भी माने जाते थे I
महात्मा गाँधी के अनुयायी थे कालेलकर
काका कालेलकर साबरमती आश्रम के सदस्य भी थे और अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना में भी उनका अहम हिस्सा रहा I वे महात्मा गाँधी के सबसे करीबी सहयोगी भी माने जाते थे और इसी वजह से वे बाद में काका के नाम से जाने गये I इसके अलावा काका कालेकर सर्वोदय पत्रकार के सम्पादक भी रह चुके थे I
एक स्वत्रन्त्रता सेनानी होने के कारण कालेकर को कई बार जेल भी जाना पड़ा था I इतना ही नही 1930 में पुणे की जेल में उन्होंने गाँधी जी के साथ समय बिताया था I सन 1952 से 1957 के बीच कालेकर राज्यसभा के सदस्य व् अनेक आयोगों के अध्यक्ष भी रह चुके थे I
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काका कालेलकर की रचनाएं
जीवन का काव्य, और जीवन साहित्य 2 निबन्ध संग्रह लिखे है I कालेकर ने 2 आत्म चरित्र लिखे है यानी अपने बारे में उन्होंने चीजे लिखी थी जिनका नाम था – धर्मोदय और जीवन लीला I इन्होने हिमालय प्रवास और लोकमाता, उस पार के पड़ोसी नामक 3 यात्रावृन्तात भी लिखे है I बापू की झांकियां कालेकर का प्रमुख संस्मरण माना जाता है I सर्वोदय रचना में इन्होने सर्वोदय लिखा हैI
काका कालेलकर जी की उपलब्धियां
सन 1948 में महात्मा गाँधी की मृत्यु पश्चात कालेलकर गाँधी स्मारक निधि से अपनी मृत्यु तक जुड़े रहे थे I उस समय कालेलकर की गिनती प्रमुख अध्यापको और देवस्थापको में होने लगी थी और हिंदी प्रचार के कार्य में जहाँ कहीं कोई दोष निकलता था या किसी कारणवश उसकी प्रगति रुक जाती तो गाँधी जी काका कालेकर को ही जांच के लिए भेजा करते थे I इस तरह के नाजुक कार्य को भी कालेलकर जी ने बेहद ही सफलतापूर्ण किया था I इसलिए राष्ट्रीय भाषा प्रचार समिति की स्थापना के बाद गुजरात में हिंदी व्यवस्था के लिए महात्मा गाँधी जी ने काका कालेकर को चुना था I जबकि उनकी भाषा मराठी थी इसके बावजूद नया काम मिलने पर उन्होंने गुजरात के अध्ययन प्रारम्भ किया और कुछ समय गुजरात में रहे थे I इसके बाद गुजरात में हिंदी प्रचार को जितनी भी सफलता मिली उसका सारा श्रेय काका कालेलकर को ही जाता है I
कालेलकर कार्य क्षेत्र
काका कालेलकर का नाम हिंदी भाषा के विकास और प्रचार के साथ जोड़ा गया है 1938 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के
अधिवेशन में उन्होंने भाषण भी दिया था I जिसमे कालेकर जी ने कहा था “ राष्ट्रीय भाषा प्रचार हमारा राष्ट्रीय कार्य्रकम है” और इसी पर दृढ रहते हुए उन्होंने हिंदी के प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम का दर्जा भी दिया था I काका कालेकर उच्च कोटि के विचारक और विद्वान माने जाते थे और उनका योगदान हिंदी भाषा के प्रचार तक ही सीमित नही था बल्कि उनकी अपनी मौलिक रचनाओ से हिंदी साहित्य समृद्ध हुआ है I
काका कालेलकर का नाम उन लोगो में पहले नम्बर पर आता है। जिन्होंने राष्ट्र भाषा प्रचार के कार्य में विशेष दिलचस्पी ली और अपना ज्यादातर समय इसी काम को दिया था I कालेलकर उन उन्नायक साहित्यकारों में एक रह चुके है जिन्होंने हिंदी भाषा क्षेत्र का न होकर भी उसमे हिंदी भाषा सीखकर उसमे लिखना शुरू किया था I उनकी ज्यादातर रचनाएँ हिंदी में लिखी गयी थी इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्ग्रत माना था I
काका कालेलकर ने प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास, भूगोल, नीति तथा तत्कालीन समस्याओं के समाधान हेतु अपनी लेखनी को गति प्रदान की थी I राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने इन्हें गाँधी पुरस्कार व् भारत सरकार द्वारा काका कालेलकर जी को पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था I काका कालेलकर एक सच्चे बुद्धिजीवी थे जिन्होंने 20 से ज्यादा ग्रन्थ लिखे थे I 21 अगस्त 1981 को देश ने एक चमकता हुआ अनमोल सितारा खो दिया. काका कालेकर 96 साल के थे जब उनकी मौत हो गयी थी I