प्रस्तुत लेख के अंतर्गत हम नाभिक की द्रव्यमान क्षति तथा नाभिक की बंधन ऊर्जा के बारे में आसान भाषा में अध्ययन करेंगे। एवं इसको आसान से समझने के लिए हम उदाहरण का भी प्रयोग करेंगे।
नाभिक की द्रव्यमान क्षति
किसी परमाणु के नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान तथा उस नाभिक में विद्यमान न्यूक्लिऑनों (प्रोटोनों तथा न्यूट्रॉनों) के द्रव्यमानों के योग से कुछ काम रहता है। द्रव्यमान की इस क्षति (कमी) को नाभिक की द्रव्यमान क्षति (mass defect of nucleus in Hindi) कहते हैं। इसे ∆m से प्रदर्शित करते हैं। अर्थात्
द्रव्यमान क्षति = (प्रोटॉनों का द्रव्यमान + न्यूट्रॉन का द्रव्यमान) – (नाभिक का द्रव्यमान)
माना किसी परमाणु ZXA के लिए परमाणु क्रमांक Z तथा द्रव्यमान संख्या A एवं प्रोटोनों की संख्या Z है तब इस प्रकार
न्यूट्रॉन की संख्या = द्रव्यमान संख्या – प्रोटोनों की संख्या
न्यूट्रॉन की संख्या = (A – Z)
एवं प्रोटोन का द्रव्यमान mP, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान mN तथा नाभिक का द्रव्यमान M है तो
नाभिक की द्रव्यमान क्षति का सूत्र
∆m = [(परमाणु क्रमांक × प्रोटोन का द्रव्यमान) + (न्यूट्रॉनों की संख्या × न्यूट्रॉन का द्रव्यमान)] – नाभिक का द्रव्यमान
या \footnotesize \boxed { ∆m = [Z m_P + (A - Z)m_N] - M }
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द्रव्यमान क्षति के उदाहरण
हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम के नाभिक में एक प्रोटोन तथा एक न्यूट्रॉन होता है। एवं न्यूट्रॉनों तथा प्रोटोनों के द्रव्यमान क्रमशः 1.6723 × 10-27 Kg तथा 1.6747 10-27 Kg हैं। एवं ड्यूटीरियम के नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान 3.34313 10-27 Kg होता है। जबकि न्यूट्रॉनों एवं प्रोटोनों के द्रव्यमान का योग 3.34709 10-27 Kg है।
अतः नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान, न्यूट्रॉनों एवं प्रोटॉनों के द्रव्यमानों के योग से कम है। तब ड्यूटीरियम में द्रव्यमान क्षति है। तो सूत्र से
द्रव्यमान क्षति ∆m = [Z × mP + (A – Z) × mN] – M
ड्यूटीरियम के लिए Z = 1, A = 2 तथा Z = 1 है तो
∆m = [1 × 1.6747 × 10-27 + (2 – 1) × 1.6723 × 10-27] – 3.34313 10-27
∆m = [1.6747 × 10-27 + 1.6723 × 10-27] – 3.34313 10-27
∆m = 3.34709 × 10-27 – 3.34313 10-27
∆m = 0.003962 × 10-27
या ∆m = 3.962 × 10-30 Kg
अतः ड्यूटीरियम का द्रव्यमान क्षति 3.96242 × 10-30 Kg है।
नाभिक की बंधन ऊर्जा
किसी नाभिक की वह न्यूनतम ऊर्जा जो नाभिक के न्यूक्लिऑनों (प्रोटोनों और न्यूट्रॉनों) को परस्पर पृथक-पृथक करने के लिए आवश्यक होती है। नाभिक की बंधन ऊर्जा (binding energy of nucleus in Hindi) कहलाती है। बंधन ऊर्जा को ∆E द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
किसी नाभिक की बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होगी, वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होगा। बंधन ऊर्जा नाभिक के स्थायित्व की माप होती है।
द्रव्यमान क्षति एवं बंधन ऊर्जा में संबंध
नाभिक की बंधन ऊर्जा = द्रव्यमान क्षति × (प्रकाश की चाल)2
या \footnotesize \boxed { ∆E = ∆m × c^2 } जूल
अतः नाभिक की बंधन ऊर्जा, नाभिक की द्रव्यमान क्षति तथा प्रकाश की चाल के वर्ग के गुणनफल के बराबर होती है।
जहां c प्रकाश की चाल है। इसका मान 3.0 × 108 मीटर/सेकंड होता है इस समीकरण को आइंस्टीन का द्रव्यमान ऊर्जा समतुल्यता सिद्धांत कहते हैं।
Note – यहां बंधन ऊर्जा को जूल में व्यक्त किया गया है। अगर बंधन ऊर्जा को मेगा इलेक्ट्रॉन-वोल्ट में व्यक्त करना हो। तो
\footnotesize \boxed { 1 MeV = 1.6 × 10^{-13} } जूल
अतः जूल से MeV में बदलने के लिए 1.6 × 10-13 से भाग करते हैं. एवं इसके विपरीत MeV से जूल में बदलने के लिए 1.6 × 10-13 से गुणा करते हैं।
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