मीटर सेतु का सिद्धांत क्या है, सूत्र, चित्र | metre bridge in Hindi

मीटर सेतु

मीटर सेतु (metre bridge in Hindi), व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत पर आधारित एक ऐसा सुग्राही यन्त्र है। जिसकी सहायता से किसी चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात किया जा सकता है।

मीटर सेतु का सिद्धांत

मीटर सेतु को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है यह एक मीटर लंबे एकसमान अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले तार से बना होता है। यह तार धातुओं की दो मोटी L आकार की पत्तियों से कसा होता है। इन दोनों पत्तियों के बीच रिक्त स्थान में एक अन्य धातु की पत्ती को प्रतिरोध द्वारा संयोजित किया जाता है। दोनों पत्तियों को एक कुंजी द्वारा सेल से जोड़ दो दिया जाता है। मध्य वाली पत्ती पर एक धारामापी को जोड़ देते हैं एवं धारामापी का दूसरा सिरा जॉकी से जुड़ा रहता है। जिसे विद्युत संयोजन बनाने के लिए तार के ऊपर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श कर सकते हैं।

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मीटर सेतु के सूत्र की स्थापना

R एक अज्ञात प्रतिरोध है जिसका मान हमें ज्ञात करना है। इसे दोनों में से किसी भी रिक्त स्थान में लगा सकते हैं। दूसरे रिक्त स्थान में एक मानक ज्ञात प्रतिरोध S को संयोजित करते हैं।
माना तार की AB लंबाई का प्रतिरोध P तथा BC लंबाई का प्रतिरोध Q है। तो व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत से

मीटर सेतु का सिद्धांत

\frac{P}{Q} = \frac{R}{S} समीकरण (1)
चित्र में AB की लंबाई ℓ सेमी है। तो BC की लंबाई (100 – ℓ) सेमी होगी। चूंकि पूरे तार की लंबाई 1 मीटर है। तो
AB का प्रतिरोध P = ρ \large \frac{ℓ}{a}
BC का प्रतिरोध Q = ρ \large \frac{100 - ℓ}{a}
जहां ρ तार का विशिष्ट प्रतिरोध तथ a अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल है। तो
दोनों सूत्रों की आपस में भाग करने पर
\frac{P}{Q} = \large \frac{ℓ}{100 - ℓ} समीकरण (2)
अब समीकरण (2) का मान समीकरण (1) में रखने पर
\frac{P}{Q} = \frac{R}{S}
\large \frac{ℓ}{100 - ℓ} = \large \frac{R}{S}
या \footnotesize \boxed { S = R \left(\frac{100 - ℓ}{ℓ}\right) }

जहां S = मानक ज्ञात प्रतिरोध
ℓ = धारामापी में शून्य विक्षेप स्थिति की दूरी
R = अज्ञात प्रतिरोध है।

मीटर सेतु की सीमाएं (सावधानियां)

चालक तार में विद्युत धारा को लंबे समय तक प्रवाहित नहीं करना चाहिए। चूंकि विद्युत धारा को अधिक समय तक प्रवाहित करने पर तार गर्म हो जाता है। जिसके कारण चालक तार का प्रतिरोध बदल जाता है।
जोकी को तार पर कसकर (रगड़कर) नहीं चलाना चाहिए। चूंकि इससे चालक तार घिसने लगता है। जिसके कारण तार की मोटाई सभी स्थानों पर समान नहीं रहेगी।


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