ट्रांजिस्टर
ट्रायोड वाल्व के स्थान पर प्रयुक्त की जाने वाली वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति जो n और p प्रकार के अर्धचालकों से बनी होती है ट्रांजिस्टर (transistor in hindi) कहलाती है।
ट्रांजिस्टर के तीन भाग होते हैं।
1. आधार
2. संग्राहक
3. उत्सर्जक
ट्रांजिस्टर का अविष्कार सर्वप्रथम वैज्ञानिकों बार्डीन, शोकले तथा बेरिन ने किया था। इस अविष्कार के लिए इन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ट्रांजिस्टर के प्रकार
ट्रांजिस्टर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।
1. pnp ट्रांजिस्टर
2. npn ट्रांजिस्टर
1. pnp ट्रांजिस्टर
pnp ट्रांजिस्टर में n-प्रकार अर्धचालक की एक बहुत पतली परत, p-प्रकार अर्धचालकों के दो छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबी होती है। बीच की पतली परत को आधार B, दाएं ओर के क्रिस्टल को संग्राहक C तथा बाएं ओर के क्रिस्टल को उत्सर्जक E कहते हैं।
pnp ट्रांजिस्टर का चित्र (a) एवं इसके प्रतीक को चित्र (b) में प्रदर्शित किया गया है।

p-n-p ट्रांजिस्टर की कार्यविधि
pnp ट्रांजिस्टर के दोनों p-क्षेत्रों में आवेश वाहक कोटर होते हैं। जबकि n-क्षेत्र में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। pnp ट्रांजिस्टर में बायीं ओर की pn संधि को बैटरी के द्वारा अल्प अग्र अभिनत विभव देते हैं जबकि दायीं ओर की pn संधि को अधिक उत्क्रम अभिनत विभव दिया जाता है।
बायीं ओर की pn संधि के अग्र अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (p-क्षेत्र) में उपस्थित कोटर आधार (n-क्षेत्र) की ओर गति करने लगते हैं। जबकि आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक की ओर गति करने लगते हैं। चूंकि आधार बहुत पतला है इसलिए इसके भीतर जाने वाले ज्यादातर कोटर संग्राहक C तक पहुंच जाते हैं। एवं आधार में बहुत अल्प मात्रा में कोटर रहते हैं जो कि इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से संयोग करते हैं।
आधार टर्मिनल में चलने वाली धारा को आधार धारा तथा संग्राहक टर्मिनल से बाहर की ओर जाने वाली धारा को संग्राहक धारा कहते हैं। इन्हें क्रमशः IB तथा IC द्वारा प्रदर्शित करते हैं। IB व IC धाराएं मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल में प्रवेश करती हैं जिसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। तब
\footnotesize \boxed { I_E = I_B + I_C }
2. npn ट्रांजिस्टर
npn ट्रांजिस्टर में p-प्रकार अर्धचालक की एक बहुत पतली परत, n-प्रकार अर्धचालकों के दो छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबी होती है। बीच की पतली परत को आधार B, दाएं ओर के क्रिस्टल को संग्राहक C तथा बाएं ओर के क्रिस्टल को उत्सर्जक E कहते हैं।
npn ट्रांजिस्टर का चित्र (a) एवं इसके प्रतीक को चित्र (b) में दर्शाया गया है।

n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि
npn ट्रांजिस्टर के दोनों n-क्षेत्रों में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। जबकि p-क्षेत्र में आवेश वाहक कोटर होते हैं। npn ट्रांजिस्टर में बायीं ओर की pn संधि को बैटरी के द्वारा अल्प अग्र अभिनत विभव दिया जाता है जबकि दायीं ओर की pn संधि को अधिक उत्क्रम अभिनत विभव दिया जाता है।
बायीं ओर की pn संधि के अग्र अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (n-क्षेत्र) में उपस्थित इलेक्ट्रॉन आधार (p-क्षेत्र) की ओर गति करने लगते हैं। जबकि आधार में उपस्थित कोटर उत्सर्जक की ओर गति करते हैं। चूंकि आधार बहुत पतला है इसलिए इसके भीतर जाने वाले ज्यादातर इलेक्ट्रॉन संग्राहक C में प्रवेश कर जाते हैं। एवं आधार में बहुत अल्प मात्रा में इलेक्ट्रॉन रहते हैं जो कि इसमें उपस्थित कोटर से संयोग करते हैं।
आधार टर्मिनल में प्रवेश करने वाली अल्प धारा को आधार धारा तथा संग्राहक टर्मिनल में प्रवेश करने वाली बड़ी धारा को संग्राहक धारा कहते हैं। इन्हें क्रमशः IB तथा IC द्वारा प्रदर्शित करते हैं। IB व IC धाराएं मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल में प्रवेश करती हैं जिसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। तो
\footnotesize \boxed { I_E = I_B + I_C }
Note – यह आर्टिकल खासकर कक्षा 12 के छात्रों के लिए तैयार किया गया है इस आर्टिकल को 12वीं कक्षा के कोर्स के हिसाब से ही बनाया गया है।
pnp और npn ट्रांजिस्टरों के प्रतीक में पीर की दिशा विद्युत धारा की दिशा को प्रदर्शित करती है।