संचार व्यवस्था 12वीं भौतिकी का 15वां यानी आखिरी अध्याय है। इस अध्याय में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं हैं जिन पर अति लघु या लघु उत्तरीय प्रश्न परीक्षाओं में पूछ लिए जाते हैं आइए इनको अच्छे से पढ़ते हैं।
संचार व्यवस्था
सूचनाओं तथा संदेशों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण करने की प्रक्रिया को संचार कहते हैं। तथा वह व्यवस्था जिसके द्वारा सूचनाओं तथा संदेशों को एक स्थान से सम्प्रेषित करके दूसरे स्थान पर ग्रहण करने की व्यवस्था को संचार व्यवस्था (communication system in Hindi) कहते हैं।
किसी संचार व्यवस्था के प्रमुख तीन अवयव होते हैं।
1. प्रेषित्र
2. संचार माध्यम
3. अभिग्राही
कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं
1. ट्रांसड्यूसर – वह युक्ति जो ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित कर देती है तब उस युक्ति को ट्रांसड्यूसर कहते हैं।
2. सिग्नल – प्रेषण के लिए प्रयुक्त विद्युत रूप में रूपांतरित सूचना को सिग्नल या संकेत कहते हैं।
3. बैंड चौड़ाई – किसी सिग्नल में उपस्थित तरंगों की आवृत्ति परास को बैंड चौड़ाई कहते हैं।
4. पुनरावर्तक – पुनरावर्तन अभिग्राही तथा प्रेषित्र का संयोजन होता है। पुनरावर्तन प्रेषित्र से सिग्नल प्राप्त करके प्रवर्धित करता है। तथा अभिग्राही को पुनः प्रेषित्र कर देता है।
5. मॉडुलन – मॉडुलन वह प्रक्रिया होती है जिसमें प्रेषित्र पर निम्न आवृत्ति की विद्युतचुंबकीय तरंगों को उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों पर अध्यारोपित कराया जाता है।
6. विमॉडुलन – विमॉडुलन वह प्रक्रिया है जिसमें अभिग्राही से प्राप्त मॉडुलेटिड तरंगों में से मूल विद्युतचुंबकीय तरंगों को अलग कर दिया जाता है।
भू तरंगें
यदि प्रेषित एंटीने से कोई रेडियो तरंग, अभिग्राही एंटीने पर सीधे अथवा पृथ्वी से परावर्तित होकर पहुंचती है। तब इस प्रकार की तरंग को भू तरंगें कहते हैं।
भू तरंगों की आवृत्ति 500 किलोहर्ट्स से 1500 किलोहर्ट्स तक होती है। भू तरंगे प्रेषित्र से अभिग्राही तक पृथ्वी सतह के समांतर संचरित होती हैं।
व्योम तरंगें
वे रेडियो तरंगे, जो पृथ्वी के आयनमण्डल द्वारा वापस पृथ्वी की ओर ही परिवर्तित कर दी जाती हैं। तब इस प्रकार की तरंगों को व्योम तरंगे कहते हैं।
व्योम तरंगों की आवृत्ति 3 मेगाहर्ट्स से 30 मेगाहर्ट्स तक होती है।
व्योम तरंगों का संचरण वायुमंडल में उपस्थित आयनमण्डल के कारण होता है।
आकाश तरंगें
वह रेडियो तरंगे जो प्रेषित्र एंटीने से सीधे, पृथ्वी तल से परावर्तन के पश्चात अभिग्राही पर लौट आती है। तब इस प्रकार की तरंगों को आकाश तरंगें कहते हैं।
आकाश तरंगों की आवृत्ति परास 40 मेगाहर्ट्स से 300 मेगाहर्ट्स तक होती है।
आकाश तरंग के संचरण को क्षोभमंडलीय संचरण कहते हैं।
प्रेषित्र एंटीने की पृथ्वी से ऊंचाई तथा पृथ्वी पर उसके परास में संबंध
माना एक प्रेषित्र एंटीना पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर स्थित है। माना पृथ्वी का केंद्र O तथा त्रिज्या R है। यहां AT तथा BT क्रमशः बिंदुओं A तथा B पर स्पर्श रेखाएं हैं।
यदि d एंटीने के आधार से पृथ्वी की दूरी है। तो

त्रिभुज AOT में
पाइथागोरस प्रमेय द्वारा
(कर्ण)2 = (आधार)2 + (लम्ब)2
OT2 = AT2 + OA2
चूंकि OT = R+h तथा OA = R है तो
(R+h)2 = AT2 + (R)2
AP = AT = d चूंकि h << R R2 + h2 +2Rh = d2 + R2
चूंकि h << R अतः 2Rh के सापेक्ष h2 को निगण्य मान सकते हैं तो
2Rh = d2
\footnotesize \boxed { d = \sqrt{2Rh} }
Note – इसके प्रशन विभिन्न प्रकार से पूछे जाती हैं जैसे –
“सिद्ध कीजिए कि आकाश तरंगों के संचरण हेतु एक टीवी प्रेषी एंटीना जो पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर है का प्रसारण परास d = \small \sqrt{2Rh} है जहां R पृथ्वी की त्रिज्या है।”
Physics class 12 Chapter 15 notes in Hindi
संचार व्यवस्था भौतिक विज्ञान कक्षा 12 का आखिरी अध्याय है इस अध्याय में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं और टॉपिक हैं जिन पर हमने स्पेशल लेख तैयार किए हैं उन्हें जरूर पढ़ें।
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