pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में क्या है, कार्यविधि,‌ आवश्यकता

यदि किसी डायोड के सिरों पर कोई प्रत्यावर्ती वोल्टता प्रयुक्त की जाए, तो परिपथ में चक्र के केवल उसी भाग में धारा प्रभावित होगी। जब डायोड अग्र अभिनत है। डायोड के इस गुण के कारण ही इसका उपयोग प्रत्यावर्ती वोल्टता के दिष्टकारण करने में किया जाता है।

pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में

जब pn संधि डायोड अग्र दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध निम्न होता है। एवं जब pn संधि डायोड पश्च दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। इस गुण के आधार पर pn संधि डायोड, डायोड वाल्व की भांति दिष्टकारी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। pn संधि डायोड का अर्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है।

pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में

ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली को टर्मिनल A और B पर वांछित प्रत्यावर्ती वोल्टता की आपूर्ति करती है। जब टर्मिनल A पर वोल्टता धनात्मक होती है तब डायोड अग्र दिशिक होता है तथा यह विद्युत धारा का चालन करता है एवं इसके विपरीत जब टर्मिनल A पर वोल्टता ऋणात्मक होती है तो डायोड पश्च दिशिक होता है और यह विद्युत धारा का चालन नहीं करता है। इसलिए प्रत्यावर्ती वोल्टता के धनात्मक अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता लोड प्रतिरोध RL के सिरों पर प्राप्त होता है। निवेशी व निर्गत वोल्टता तरंग रूप को चित्र में स्पष्ट किया गया है।

अर्ध तरंग दिष्टकारी कार्यविधि

अर्ध तरंग दिष्टकारी कार्यविधि

निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A धनात्मक तथा टर्मिनल B ऋणात्मक होता है। तब संधि डायोड अग्र दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह होता है तथा लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है। एवं प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दूसरे अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A ऋणात्मक तथा टर्मिनल B धनात्मक होता है। तब संधि डायोड पश्च दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है। तथा लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता शून्य होती है।

अतः इस प्रकार निर्गत वोल्टता केवल धनात्मक अर्ध चक्र में ही प्राप्त होती है। लेकिन ऋणात्मक अर्ध चक्र में विद्युत धारा प्राप्त नहीं होती है। चूंकि प्रत्यावर्ती तरंग के केवल एक ही अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है अतः इस परिपथ को अर्थ तरंग दिष्टकारी कहते हैं।


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