अनुनादी आवृत्ति
जब प्रेरण प्रतिघात XL , संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तो परिपथ की प्रतिबाधा Z का मान शून्य हो जाता है। तब इस स्थिति में धारा का आयाम अनंत हो जाता है तब यह विद्युत अनुनाद की स्थिति होती है। अतः इस प्रकार विद्युत अनुनाद की स्थिति में उत्पन्न होने वाली आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति (resonant frequency in Hindi) कहते हैं।
अर्थात् अनुनाद की अवस्था में प्रेरकत्व के कंपन की आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
अनुनादी परिपथ
जब प्रेरण प्रतिघात XL, संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तथा परिपथ की प्रतिबाधा प्रतिरोध के बराबर होती है। तब परिपथ को अनुनादी परिपथ कहते हैं।
माना यदि प्रेरण प्रतिघात XL तथा संधारित्र प्रतिघात XC बराबर है तो परिपथ की प्रतिबाधा
Z = \small \sqrt{R^2 + (X_L - X_C)^2 }
चूंकि XL = XC है तो प्रतिबाधा
Z = \small \sqrt{R^2 + (X_L - X_L)^2 }
\footnotesize \boxed { Z = R}
यही अनुनादी परिपथ होने की शर्त है।
अनुनादी परिपथ दो प्रकार के होते हैं।
1. श्रेणी अनुनादी परिपथ
2. समांतर अनुनादी परिपथ
1. श्रेणी अनुनादी परिपथ
इसमें L, C तथा R तीनों को श्रेणी क्रम में संयोजित किया जाता है। श्रेणी अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा न्यूनतम तथा धारा अधिकतम होती है।
2. समांतर अनुनादी परिपथ
इसमें L व C समांतर क्रम में संयोजित होते हैं। तथा R दोनों शाखाओं में लगा होता है। समांतर अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा अधिकतम तथा धारा न्यूनतम होती है।
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अनुनादी आवृत्ति का सूत्र
जब प्रेरण प्रतिघात XL, संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तो यह परिपथ अनुनादी परिपथ कहलाता है। इसमें परिपथ की प्रतिबाधा शून्य होती है।
तब अनुनाद की स्थिति में
Z = XL – XC
चूंकि प्रतिबाधा Z = 0 है तो
0 = XL – XC
या XL = XC
प्रेरण प्रतिघात = संधारित्र प्रतिघात
XL = XC
चूंकि हम पढ़ चुके हैं कि XL = ωL एवं XC = 1/ωC होता है तो
ωL = \large \frac{1}{ωC}
परन्तु ω परिपथ की कोणीय आवृत्ति होती है। जिसका मान
ω = 2πf होता है तो
2πfL = \large \frac{1}{2πfC}
2πf × 2πf = \large \frac{1}{LC}
4π2f2 = \large \frac{1}{LC}
या f2 = \large \frac{1}{4π^2LC}
तब f = \small \sqrt{\frac{1}{4πLC} }
\footnotesize \boxed { f = \frac{1}{2π} \sqrt{\frac{1}{LC}} }
यहां f को परिपथ की अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।