प्रस्तुत लेख के अंतर्गत हम सरल सूक्ष्मदर्शी के बारे में आसान भाषा में विस्तार से अध्ययन करेंगे एवं इसकी आवर्धन क्षमता का सूत्र स्थापित करेंगे।
सरल सूक्ष्मदर्शी
वह सरल प्रकाशिक यंत्र जिसके द्वारा छोटी वस्तुओं का बड़ा प्रतिबिंब देखा जा सकता है। उसे सरल सूक्ष्मदर्शी (simple microscope in Hindi) कहते हैं। इसका सर्वाधिक उपयोग सरल आवर्धक के रूप में होता है जिस कारण इसे आवर्धक लेंस भी कहते हैं।
संरचना
यह कम फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस होता है जो प्लास्टिक अथवा किसी धातु के फ्रेम में कसा होता है तथा इसे पकड़ने के लिए फ्रेम में एक हत्था लगा रहता है।

सरल सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत
इसका सिद्धांत यह है कि जब वस्तु को उत्तल लेंस तथा उसकी फोकस के बीच रखते हैं तो वस्तु का बड़ा, आभासी तथा सीधा प्रतिबिंब बनता है। अतः लेंस में से देखने पर वह वस्तु आकार में बड़ी अथवा आवर्धित दिखाई देने लगती है।
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प्रतिबिंब का बनना
माना एक वस्तु AB है जिसको बड़ा करके देखना है। तब इसे लेंस के प्रकाशिक केंद्र O तथा फोकस F के बीच में इस प्रकार रखा जाता है कि जिससे कि वस्तु का आभासी, बड़ा तथा सीधा प्रतिबिंब A1B1 लेंस की ओर इतनी दूरी पर बने जितनी आंख की स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी है।

इस स्थिति में वस्तु का सीधा, आभासी तथा बड़ा प्रतिबिंब A1B1 वस्तु AB की ओर बनता है।
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
1. जब अंतिम प्रतिबिंब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है :
तो सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
\footnotesize \boxed { M = 1 + \frac{D}{f} }
2. जब अंतिम प्रतिबिंब अनन्त पर बनता है :
तो सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
\footnotesize \boxed { M = \frac{D}{f} }
अतः समीकरण द्वारा स्पष्ट होता है कि लेंस की फोकस दूरी जितनी कम होगी। सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता उतनी ही अधिक होगी।
सरल सूक्ष्मदर्शी के दोष
यह तो पढ़ चुके हैं की सरल सूक्ष्मदर्शी फोकस दूरी जितनी कम होती है। उसकी आवर्धन क्षमता उतनी अधिक होती है।
लेकिन बहुत अधिक कम फोकस दूरी का लेंस मोटा होता है जिससे बनने वाले प्रतिबिंब में अनेक प्रकार के दोष आ जाते हैं। यह सरल सूक्ष्मदर्शी का एक दोष है।