वान डी ग्राफ जनित्र क्या है इसके बारे में हम पिछले लेख में पढ़ चुके हैं। उसमें हमने वान डी ग्राफ जनित्र की रचना, कार्य विधि एवं उपयोग के बारे में चर्चा की थी प्रस्तुत लेख के अंतर्गत हम वान डी ग्राफ जनित्र का सिद्धांत के बारे में संपूर्ण अध्ययन करेंगे।
वान डी ग्राफ जनित्र का सिद्धांत
वान डी ग्राफ जनित्र के कार्य करने का सिद्धांत दो घटनाओं पर आधारित है।
1. किसी खोखले चालक को दिया गया आवेश केवल उस चालक के बाहरी पृष्ठ पर संपूर्ण रूप से उपस्थित रहता है। अर्थात् एकसमान रूप से चालक के बाहरी पृष्ठ पर वितरित रहता है।
2. किसी आवेशित चालक से वायु में विद्युत विसर्जन उसके तीक्ष्ण नुकीले सिरे के द्वारा होता है।
Note – वान डी ग्राफ जनित्र की रचना, सिद्धांत कार्य विधि का वर्णन कीजिए?
अगर प्रश्न कुछ इस प्रकार पूछा जाता है। तो यह जो दो सिद्धांत दिए हैं इनको ही करना बाकी आगे हम इन दिनों सिद्धांत की उत्पत्ति करके आपको समझाने के लिए कर रहे हैं। बाकी इन सिद्धांतों की उत्पत्ति परीक्षाओं में नहीं पूछी जाती है बस आप को समझना चाहिए कि यह सिद्धांत किस तरह से स्थापित हुए हैं।
प्रथम सिद्धांत की उत्पत्ति
माना r त्रिज्या का एक गोलीय चालक A है। जिस पर +q आवेश है। यह चालक खोखले गोले B से घिरा है। जिस पर +Q आवेश है। चालक के पृष्ठ पर स्थित आवेश को केंद्रित मान सकते हैं। तो चालक A पर विभव
VA = \left( \frac{1}{4πε_o} \frac{q}{r} \right) + \left( \frac{1}{4πε_o} \frac{Q}{R} \right)
एवं चालक पर B विभव
VB = \left( \frac{1}{4πε_o} \frac{Q}{R} \right) + \left( \frac{1}{4πε_o} \frac{q}{R} \right)
तब विभवान्तर VA – VB = \frac{q}{4πε_o} \left[ \frac{1}{r} - \frac{1}{R} \right]
अतः इस समीकरण द्वारा स्पष्ट है कि विभवान्तर का मान कोश B के आवेश Q पर निर्भर नहीं करता है। चाहे उस पर धन आवेश हो या ऋण आवेश यह वह अनावेशित हो।
तथा विभवान्तर एक धनात्मक राशि है। अतः भीतरी चालक सदैव उच्च विभव पर रहता है। यही वान डी ग्राफ जनित्र का सिद्धांत है
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द्वितीय सिद्धांत की उत्पत्ति
माना r त्रिज्या का एक गोलीय चालक है। जब चालक को q आवेश दिया जाता है। तो इसके विभव में होने वाली वृद्धि

V = \frac{1}{4πε_o} \frac{q}{r}
या q = 4πεorV समीकरण (1)
गोलीय चालक का पृष्ठ आवेश घनत्व σ = \frac{q}{A} = \frac{q}{4πr^2} (क्योंकि गोले का क्षेत्रफलA = 4πr2)
अब समीकरण (1) से q का मान रखने पर
σ = \frac{4πε_orV}{4πr^2}
σ = \large \frac{ε_oV}{r}
या σ ∝ \large \frac{1}{r}
आवेशित चालक के पृष्ठ पर नुकीले सिरे होने के कारण
r → 0
अतः r→ ∞
इस उच्च आवेश घनत्व के कारण आवेश का क्षरण होता है। जिस कारण नुकीले सिरों के संपर्क में वायु के कण आवेश को ले जाते हैं। एवं इस प्रकार नुकीले सिरों के सामने आवेशित कणों की एक धारा बन जाती है। यही वान डी ग्राफ जनित्र का सिद्धांत है।
इस प्रकार दो वान डी ग्राफ जनित्र के दोनों सिद्धांत की उत्पत्ति की जाती है यह उत्पत्ति प्रश्नों में नहीं पूछी जाती है। यह केवल आपको समझाने के लिए कराई गई है इसलिए आप इस उत्पत्ति पर ज्यादा ध्यान न दें। अगर कोई समस्या या सुझाव हो तो हमसे संपर्क करें।