देश में मसालों की बढ़ती मांग और निर्यात के कारण किसान अब मसालों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। कई किसान मसाला फसलों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। बुंदेलखंड के किसान इस क्षेत्र में सफल हो रहे हैं, जबकि राजस्थान में भी किसान मसाला फसलों की खेती कर रहे हैं। दूसरे राज्यों में भी मसाला फसलें उगाने के अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। सरकार भी इस खेती को बढ़ावा दे रही है और मसाला फसलों की खेती के लिए 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रही है। इससे किसान आसानी से मसालों की खेती कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको मुख्य 8 मसाला फसलों के बारे में जानकारी देंगे, जो किसानों के लिए अच्छी कमाई का साधन बन सकती हैं। इस जानकारी से किसान अपने लाभ को बढ़ा सकते हैं।

जीरा की खेती

Cumin Farming
Cumin Farming

Cultivation of spices: जीरा, एक आम मसाला, दाल, सब्जी और छाछ में इस्तेमाल होता है। यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है और इसकी खेती से अच्छी कमाई होती है। इसकी मांग सालभर रहती है। 2020-21 में उत्पादन 14.8% बढ़ा। उन्नत किस्में जैसे आरजे-19, आरजे-209, जीसी-4, और आरजे-223 अच्छी पैदावार देती हैं। किसानों के लिए जीरे की खेती एक लाभदायक विकल्प है। इसकी बढ़ती मांग और अच्छी कीमतें किसानों की आय बढ़ा सकती हैं। जीरे की खेती सरल और लाभकारी है।

लहसुन की खेती

Garlic Farming
Garlic Farming

Cultivation of spices: लहसुन की खेती किसानों के लिए एक अच्छा अवसर है, जिससे वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं। लहसुन का उपयोग सब्जी, अचार और आयुर्वेदिक दवाओं में होता है। इसे इम्युनिटी बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है। लहसुन की हमेशा बाजार में मांग बनी रहती है। बुंदेलखंड के किसान लहसुन की खेती कर बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश में लहसुन का उत्पादन 14.7 फीसदी बढ़ा है। उन्नत किस्मों की खेती से अच्छे लाभ की संभावना है। इनमें एग्रीफाउंड पार्वती (जी-313), टी-56-4, गोदावरी (सेलेक्सन-2), एग्रीफाउंड व्हाइट (जी-41), यमुना सफेद (जी-1), भीमा पर्पल और भीमा ओंकार शामिल हैं।

अदरक का उत्पादन

Ginger Farming
Ginger Farming

भारत में 2020-21 में अदरक का उत्पादन 7.5% बढ़ा है। कम लागत में अच्छी कमाई का जरिया है अदरक की खेती। किसान ताज़ा अदरक या सुखाकर सोंठ बनाकर बेच सकते हैं। तीन मुख्य किस्में हैं: सुप्रभात, सुरूचि और सुरभी। अदरक की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है। आसान खेती और अच्छी मार्केटिंग से मुनाफ़ा बढ़ाया जा सकता है। इससे किसानों की आय में इज़ाफ़ा होगा।

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सौंफ का उत्पादन

Fennel Farming
Fennel Farming

सौंफ, एक बहुउपयोगी मसाला फसल है जिसका उपयोग सब्ज़ियों और अचारों में होता है। यह कई बीमारियों में दवा के रूप में भी काम आती है, आयुर्वेद में इसे त्रिदोष नाशक माना गया है। इसकी खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, 2020-21 में उत्पादन में 6.8% की बढ़ोतरी हुई। उत्कृष्ट किस्में हैं: गुजरात सौंफ 1, 2, 11, आरएफ 125, पीएफ 35, आरएफ 105, हिसार स्वरूप, एनआरसीएसएसएएफ 1, आरएफ 101, और आरएफ 143। सौंफ की बढ़ती मांग और उत्पादन में वृद्धि से यह एक लाभदायक व्यवसाय बन सकता है। इसकी खेती के लिए उचित तकनीक अपनाकर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। अच्छी गुणवत्ता वाली बीज का चुनाव और उर्वरक का सही उपयोग उत्पादन में वृद्धि करेगा।

धनिया की फसल

Coriander Farming
Coriander Farming

धनिया एक वार्षिक मसाला (Cultivation of spices) फसल है, जिसे अम्बेली फेरी या गाजर कुल के अंतर्गत रखा जाता है। इसे हरे धनिये के नाम से सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले भी जाना जाता है। धनिये की पत्तियां और बीज न केवल भोजन को सुगंधित करते हैं, बल्कि उन्हें स्वादिष्ट भी बनाते हैं। धनिया के बीज में कई औषधीय गुण होते हैं, इसलिए इन्हें खाना पकाने के साथ-साथ कार्मिनेटिव और डायरेटिक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। भारत में धनिये की खेती कई राज्यों में की जाती है, जिसमें मध्यप्रदेश सबसे आगे है, जहां यह 1,16,607 हेक्टेयर में उगाया जाता है और लगभग 1,84,702 टन उत्पादन होता है। भारत धनिया का एक प्रमुख निर्यातक देश है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में धनिये के उत्पादन में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। प्रमुख धनिया की किस्मों में हिसार सुगंध, आर सी आर 41, कुंभराज, और अन्य शामिल हैं।

मेथी एक लाभदायक फसल

Fenugreek Farming
Fenugreek Farming

मेथी को एक लाभदायक फसल माना जाता है। यदि किसान इसे व्यवसायिक रूप से उगाएं, तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मेथी का उपयोग सब्जियों, अचार और सर्दियों में लड्डू बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियाँ साग बनाने के लिए उपयुक्त हैं, जबकि इसके दाने मसालों में उपयोग होते हैं। स्वास्थ्य के लिए मेथी बहुत फायदेमंद है। इसका चूर्ण बनाकर डायबिटीज में सेवन किया जाता है। हरी मेथी और दानेदार मेथी दोनों ही स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। मेथी की खेती के लिए कुछ उन्नत किस्में हैं, जैसे अजमेर फेन्यूग्रीक-1, 2 और 3, आर.एम.टी.-143, आर.एम.टी.-305, राजेंद्र क्रांति और कसूरी मेथी। वित्तीय वर्ष 2020-21 में इसके उत्पादन में 5.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

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लाल मिर्च का उत्पादन

Chili pepper Farming
Chili pepper Farming

वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत में लाल मिर्च का उत्पादन 4.2 प्रतिशत बढ़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि किसान मिर्च का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मिर्च की उन्नत किस्मों में मिर्च-एन.पी, 46 ए, पूसा ज्वाला और पूसा सदाबहार शामिल हैं। शिमला मिर्च की अच्छी किस्मों में पूसा दीप्ती, अर्का मोहनी और अर्का गौरव शामिल हैं। आचार मिर्च के लिए सिंधुर किस्म को बेहतर माना जाता है। इसके अलावा, कैप्सेसीन उत्पादन के लिए अपर्ना और पचास यलो किस्में भी अच्छी मानी गई हैं।

हल्दी की फसल

Turmeric Farming
Turmeric Farming

हल्दी एक बहुपरकारी फसल है, जो व्यावसायिक खेती के माध्यम से अच्छा मुनाफा दे सकती है। भारत में हल्दी की खेती प्रमुख रूप से आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय और असम में होती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में भी इसकी खेती शुरू हुई है। आंध्र प्रदेश में हल्दी की खेती सबसे अधिक होती है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत योगदान करती है। यहां की कृषि भूमि का 38 से 58.5 प्रतिशत क्षेत्रफल हल्दी के उत्पादन में उपयोग होता है, हल्दी की उन्नत किस्में जैसे पूना, सोनिया, गौतम और कृष्णा प्रमुख हैं।

सरकार मसाले की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान करती है

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत कोल्ड स्टोरेज के लिए अधिकतम 4 करोड़ रुपए तक का अनुदान उपलब्ध है। मसाले के प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने पर लागत का 40 प्रतिशत और अधिकतम 10 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है। छंटाई, ग्रेडिंग और शॉर्टिंग के लिए सरकार 35 प्रतिशत अनुदान देती है, जिसमें इकाई लगाने का खर्च लगभग 50 लाख रुपए होता है। पैकिंग इकाई स्थापित करने पर करीब 15 लाख रुपए का खर्च आता है, जिसमें 40 प्रतिशत अनुदान मिलता है। मसाला फसलों की खेती के लिए लागत का 40 प्रतिशत या अधिकतम 5500 रुपए प्रति हैक्टेयर का अनुदान प्रदान किया जाता है। कृषि विभाग मसाला खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत खेती की लागत का 50 प्रतिशत तक अनुदान देता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में फव्वारा, स्प्रिंक्लर और बूंद-बूंद सिंचाई उपकरणों पर भी अनुदान मिलता है। जैविक खेती करने वाले किसानों को अतिरिक्त अनुदान दिया जाता है, जिसमें मसाले की जैविक खेती पर लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर का अनुदान शामिल है। कीट रोग प्रबंधन के लिए भी 30 प्रतिशत या 1200 रुपए प्रति हैक्टेयर का अनुदान मिलता है।

2020-21 में देश से मसालों का निर्यात कितना हुआ?

भारत में मसालों का उत्पादन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। 2014-15 में 67.64 लाख टन से बढ़कर 2020-21 में यह 106.79 लाख टन तक पहुंच गया। इस दौरान मसाला उत्पादन क्षेत्र भी 32.24 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 45.28 लाख हेक्टेयर हो गया है। इसके परिणामस्वरूप, भारत का मसाला निर्यात भी बढ़ा है। 2014-15 में भारत ने 8.94 लाख टन मसाला निर्यात किया, जिसकी कीमत 14,900 करोड़ रुपए थी। 2020-21 में, उत्पादन में वृद्धि के चलते निर्यात 16 लाख टन तक पहुंच गया, जिसका मूल्य 29,535 करोड़ रुपए रहा। इस अवधि में निर्यात में 9.8 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर और मूल्य में 10.5 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली। यह आंकड़े भारत की मसाला उद्योग की ताकत को दर्शाते हैं।

देश में मसाला विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।

देश में मसालों के उत्पादन में शानदार वृद्धि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के विभिन्न विकास कार्यक्रमों के कारण हुई है। इनमें एकीकृत बागवानी विकास मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। ये योजनाएँ किसानों को लाभ पहुँचा रही हैं।

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