भारतीय क्रिकेट में इन दिनों खिलाड़ियों के वर्कलोड मैनेजमेंट पर बहुत फोकस है। खासतौर पर तेज गेंदबाजों के प्रदर्शन और फिटनेस को लेकर कई पूर्व दिग्गज अपनी राय रखते नजर आ रहे हैं। हाल ही में बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी 2024-25 के पांचवें टेस्ट के दौरान जसप्रीत बुमराह (Jasprit Bumrah) की चोट ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या भारतीय गेंदबाजों का वर्कलोड मैनेजमेंट सही दिशा में है। इसी कड़ी में 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य और पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज बलविंदर सिंह संधू ने बुमराह की चोट और वर्कलोड को लेकर तीखी टिप्पणी की है।

वर्कलोड मैनेजमेंट को बताया ‘बकवास’

बलविंदर सिंह संधू ने बुमराह (Jasprit Bumrah) की चोट और वर्कलोड को लेकर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह “वर्कलोड” जैसे शब्द विदेशी शब्द हैं, जिन्हें ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों ने गढ़ा है। संधू ने कहा, “वर्कलोड? बुमराह (Jasprit Bumrah) ने कितने ओवर डाले? 150 के आस-पास, लेकिन कितने मैचों या पारियों में? 5 मैच या 9 पारियां, है ना? इसका मतलब है कि उन्होंने प्रति पारी 16 ओवर या प्रति मैच 30 ओवर डाले। और वह भी स्पेल में। तो इसमें कौन सी बड़ी बात है?”

संधू ने आगे कहा कि जब वे खेला करते थे, तब गेंदबाजों को 25-30 ओवर तक गेंदबाजी करनी पड़ती थी। कपिल देव ने अपने करियर में लगातार लंबे स्पेल फेंके हैं। “जब आप लगातार गेंदबाजी करते हैं, तो आपका शरीर और मांसपेशियां उसी हिसाब से ढल जाती हैं। आज के समय में आपके पास बेहतरीन फिजियोथेरेपिस्ट, मसाज थेरेपिस्ट और डॉक्टर हैं। अगर कोई गेंदबाज 20 ओवर नहीं डाल सकता, तो उसे भारत के लिए खेलना छोड़ देना चाहिए,” संधू ने जोड़ा।

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Jasprit Bumrah की चोट और आगे का रास्ता

Jasprit Bumrah
Jasprit Bumrah

बुमराह (Jasprit Bumrah) ने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में कुल 151.2 ओवर डाले हालांकि, बुमराह की चोट के चलते उनके आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 में खेलने पर अभी भी कन्फ्यूजन बना हुआ है। भारतीय टीम मैनेजमेंट और फैंस को बुमराह (Jasprit Bumrah) की फिटनेस को लेकर चिंता है, लेकिन संधू की राय में यह चिंता बेकार है। संधू के अनुसार, अगर बुमराह (Jasprit Bumrah) या किसी अन्य गेंदबाज को लंबी गेंदबाजी से परेशानी है, तो उन्हें टीम से बाहर रहना चाहिए।

बलविंदर सिंह संधू ने भारत के लिए 9 टेस्ट मैच खेले हैं और 10 विकेट लिए हैं। हालांकि, संधू का अंतरराष्ट्रीय करियर ज्यादा लंबा नहीं रहा, लेकिन 1983 विश्व कप में उनका योगदान यादगार रहा है। उनका मानना है कि अगर भारतीय टीम को मजबूत बनाना है, तो गेंदबाजों को कड़ी मेहनत करनी होगी और वर्कलोड जैसी विदेशी शब्द को नजरअंदाज करना होगा।

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